Woh shaaḳh-e mahtab kat chuki hai

बहुत दिनों से वो शाख़-ए-महताब कट चुकी है कि जिस पे तुम ने गिरफ़्त-ए-वा’दा की रेशमी शाल के सितारे सजा दिए थे बहुत दिनों से वो गर्द-ए-एहसास छट चुकी है कि जिस के ज़र्रों पे तुम ने पलकों की झालरों के तमाम नीलम लुटा दिए थे और अब तो यूँ है कि जैसे लब-बस्ता हिजरतों … Read more